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आलोक श्रीवास्तव

1971 | नोएडा, भारत

मशहूर शायर और गीतकार

मशहूर शायर और गीतकार

आलोक श्रीवास्तव

ग़ज़ल 20

अशआर 4

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं

ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ

आँखों से आगे उन की कोई रहगुज़र नहीं

यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की

जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले

बात करो तो लफ़्ज़ों से भी ख़ुश्बू आती है

लगता है उस लड़की को भी उर्दू आती है

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