अनवर मोअज़्ज़म
अशआर 12
वो हबीब हो कि रहबर वो रक़ीब हो कि रहज़न
जो दयार-ए-दिल से गुज़रे उसे हम-कलाम कर लो
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हमें बादा-कश-ए-दर्द-ए-तमन्ना
हमीं पर बंद है मय-ख़ाना दिल का
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सब दिखाते हैं तिरा अक्स मिरी आँखों में
हम ज़माने को इसी तौर से महबूब हुए
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आओ देखें अहल-ए-वफ़ा की होती है तौक़ीर कहाँ
किस महफ़िल का नाम है मक़्तल खिंचती है शमशीर कहाँ
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आँखों में घुल न जाएँ कहीं ज़ुल्मतों के रंग
जिस सम्त रौशनी है उधर देखते रहो
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