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जोर्ज पेश शोर

1823 - 1894 | मेरठ, भारत

जोर्ज पेश शोर

ग़ज़ल 3

 

अशआर 20

दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं

दो जहाँ की जुस्तुजू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं

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गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब की साल नहीं

ज़माना एक सा बस हर बरस नहीं चलता

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इक नज़र ने किया है काम तमाम

आरज़ू भी तो थी यही दिल की

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देते दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर

कुछ आप की ख़ता थी अपना क़ुसूर था

इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ

तुम्हीं क़रार भी दोगे जो बे-क़रार किया

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