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रियाज़ लतीफ़

1964 | पूने, भारत

प्रमुख उत्तर-आधुनिक शायर/गुजरात में प्रवास

प्रमुख उत्तर-आधुनिक शायर/गुजरात में प्रवास

रियाज़ लतीफ़

ग़ज़ल 22

नज़्म 17

अशआर 7

यहीं पर ख़त्म होनी चाहिए थी एक दुनिया

यहीं से बात का आग़ाज़ होना चाहिए था

किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश

ख़ुद अपनी मर्ज़ी से इस जहाँ की रगों में गिर्दाब हम हुए हैं

ज़मीन फैल गई है हमारी रूह तलक

जहाँ का शोर अब अंदर सुनाई देता है

ख़ुदा की ख़मोशी में शायद हो उस का वजूद

ज़माना हुआ नाम अपना पुकारे हुए

बाद में रखे सराबों के दयारों में क़दम

पहले वो साँस की सरहद पे तो कर देखे

पुस्तकें 4

 

वीडियो 5

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

रियाज़ लतीफ़

रियाज़ लतीफ़

Riyaz Latif, visiting Lecturer at Wellesley college in USA. Riaz latif reciting is his poetry at Rekhta. रियाज़ लतीफ़

रियाज़ लतीफ़

Riyaz Latif, visiting Lecturer at Wellesley college in USA. Riaz latif reciting is his poetry at Rekhta. रियाज़ लतीफ़

मैं वहाँ हूँ कि नहीं चाहे तो जा कर देखे

रियाज़ लतीफ़

मुस्तक़बिल की आँख

मेरे माज़ी की आँख मुस्तक़बिल रियाज़ लतीफ़

ऑडियो 12

ख़ुद अपना इंतिज़ार भी

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है

Recitation

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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