Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
noImage

एहसान दरबंगावी

1922 - 1998 | बिहार, भारत

विख्यात प्रगतिवादी शायर

विख्यात प्रगतिवादी शायर

एहसान दरबंगावी

ग़ज़ल 26

अशआर 5

तुम इस तरफ़ से गुज़र चुकी हो मगर गली गुनगुना रही है

तुम्हारी पाज़ेब का वो नग़्मा फ़ज़ा में अब तक खनक रहा है

शायद अभी बाक़ी है कुछ आग मोहब्बत की

माज़ी की चिताओं से उठता है धुआँ 'एहसाँ'

  • शेयर कीजिए

बड़ी मुश्किलों से काटा बड़े कर्ब से गुज़ारा

तिरे ब'अद कोई लम्हा जो मिला कभी ख़ुशी का

  • शेयर कीजिए

शौक़ के मुम्किनात को दोनों ही आज़मा चुके

तुम भी फ़रेब खा चुके हम भी फ़रेब खा चुके

  • शेयर कीजिए

नज़र आती है सारी काएनात-ए-मै-कदा रौशन

ये किस के साग़र-ए-रंगीं से फूटी है किरन साक़ी

पुस्तकें 1

 

संबंधित लेखक

"बिहार" के और लेखक

Recitation

Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

बोलिए