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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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हामी गोरखपुरी

हामी गोरखपुरी

अशआर 2

कौनसा नाम दें ऐसी बरसात को जिस के दामन में पानी भी है आग भी

हूक उठती रही रूह जलती रही दिल पिघलता रहा अश्क ढलते रहे

शहर-दर-शहर ये ख़ाक-ओ-ख़ूँ की फ़ज़ा सोची-समझी हुई एक तहरीक है

ऊँचे महलों में बैठे रहे अहल-ए-ज़र मुफ़लिसों के मकानात जलते रहे

 

ग़ज़ल 7

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