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इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

1727 - 1755 | दिल्ली, भारत

मीर तक़ी ' मीर ' के समकालीन और उनके प्रतिद्वंदी के तौर पर प्रसिद्ध। उन्हे उनके पिता ने क़त्ल किया।

मीर तक़ी ' मीर ' के समकालीन और उनके प्रतिद्वंदी के तौर पर प्रसिद्ध। उन्हे उनके पिता ने क़त्ल किया।

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

ग़ज़ल 44

अशआर 14

चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर

दे ले साक़ी हम को मय ये अब्र-ए-बाराँ फिर कहाँ

क्या बदन होगा कि जिस के खोलते जामे का बंद

बर्ग-ए-गुल की तरह हर नाख़ुन मोअत्तर हो गया

दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा

किसी दुश्मन को मुब्तला करे

ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने

ज़ाहिद तुझे क़सम है जो तू हो तो क्या करे

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हक़ मुझे बातिल-आश्ना करे

मैं बुतों से फिरूँ ख़ुदा करे

पुस्तकें 5

 

ऑडियो 7

इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था

बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते

मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ

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