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जावेद कमाल रामपुरी

1930 - 1978 | अलीगढ़, भारत

जावेद कमाल रामपुरी

ग़ज़ल 14

नज़्म 4

 

अशआर 10

फिर कई ज़ख़्म-ए-दिल महक उट्ठे

फिर किसी बेवफ़ा की याद आई

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अब तो जाओ रस्म-ए-दुनिया की

मैं ने दीवार भी गिरा दी है

हाथ फिर बढ़ रहा है सू-ए-जाम

ज़िंदगी की उदासियों को सलाम

अगर सुकून से उम्र-ए-अज़ीज़ खोना हो

किसी की चाह में ख़ुद को तबाह कर लीजे

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हाए वो लोग हम से रूठ गए

जिन को चाहा था ज़िंदगी की तरह

क़ितआ 7

पुस्तकें 1

 

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