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जुरअत क़लंदर बख़्श

1748 - 1809 | लखनऊ, भारत

अपनी शायरी में महबूब के साथ मामला-बंदी के मज़मून के लिए मशहूर, नौजवानी में नेत्रहीन हो गए

अपनी शायरी में महबूब के साथ मामला-बंदी के मज़मून के लिए मशहूर, नौजवानी में नेत्रहीन हो गए

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ग़ज़ल

ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-ग़म-ए-यार कि तू

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

इतना बतला मुझे हरजाई हूँ मैं यार कि तू

फ़सीह अकमल

ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-ग़म-ए-यार कि तू

फ़सीह अकमल

ग़म रो रो के कहता हूँ कुछ उस से अगर अपना

फ़सीह अकमल

बुलबुल सुने न क्यूँकि क़फ़स में चमन की बात

फ़सीह अकमल

सौत-ए-बुलबुल दिल-ए-नालाँ ने सुनाई मुज को

फ़सीह अकमल

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