- पुस्तक सूची 185616
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1922
औषधि883 आंदोलन291 नॉवेल / उपन्यास4404 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी11
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1435
- दोहा64
- महा-काव्य105
- व्याख्या182
- गीत83
- ग़ज़ल1118
- हाइकु12
- हम्द44
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1547
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात675
- माहिया19
- काव्य संग्रह4872
- मर्सिया376
- मसनवी817
- मुसद्दस57
- नात537
- नज़्म1204
- अन्य68
- पहेली16
- क़सीदा180
- क़व्वाली19
- क़ित'अ60
- रुबाई290
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती12
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई28
- अनुवाद73
- वासोख़्त26
ख़्वाजा हसन निज़ामी के हास्य-व्यंग्य
मिस चिड़िया की कहानी
एक चिड़े चिड़िया ने नई रौशनी की एक ऊंची कोठी में अपना घोंसला बनाया था, उस कोठी में एक मुसलमान रहते थे जो विलायत से बैरिस्ट्री पास करके और एक मेम को साथ लेकर आए थे। उनकी बैरिस्ट्री कुछ चलती न थी, मगर घर के अमीर ज़मींदार थे, गुज़ारा ख़ूबी से हुआ जाता था।
बिंत-ए-छिपकली
ख़ुदा के लिए रीज़लो जल्दी आओ। इस बिंत-ए-छिपकली को दीवार से हटाओ, यकसाँ परवानों को खाए चली जाती है। गर्मी आई मैंने लैम्प जलाया। परवानों की आमद हुई। लिखना-पढ़ना ख़ाक नहीं, उनकी बेक़रारियाँ देख-देख कर जी बहलाता हूँ। शरीर छिपकली ज़ादी कहाँ से आ गई जो ग़रीब
ईद की जूती
जनाब अकबर ने फ़रमाया था, डॉसन ने जूता बनाया। मैंने मज़मून लिखा। मेरा मज़मून न चला और जूता चल गया। अब कोई उनसे अ'र्ज़ करे, विलायती जूतों के दाम इतने बढ़ गए हैं कि उनके चलते पाँव भी लँगड़े हुए जाते हैं। ईद पर ख़िलक़त जूते ख़रीदने जाती थी, और दो जूतियाँ
अल-गिलहरी
गिलहरी एक मुज़ी जानवर है, चूहे की सूरत चूहे की सीरत। वो भी ईज़ा दहिन्दा ये यही सताने वाली। चूहा भूरे रंग का ख़ाकी लिबास रखता है, फ़ौजी वर्दी पहनता है। गिलहरी का रंग चूल्हे की सी राख का होता है। पीठ पर चार लकीरें हैं, जिसको लोग कहते हैं कि हज़रत बीबी
इश्क़बाज़ टिड्डा
हज़ारों लाखों नन्ही सी जान के कीड़ों पतिंगों में टिड्डा एक बड़े जिस्म और बड़ी जान का इ'श्क़बाज़ है और परवाने आते हैं तो रौशनी के गिर्द तवाफ़ करते हैं। बेक़रार हो-होकर चिमनी से सर टकराते हैं। टिड्डे की शान निराली है। ये घूरता है, मूंछों को बल देता है और उचक
ख़ुदा परस्ती का नुसख़ा
डाक्टरों ने ईजाद किया, गर्मी-गर्मी को मारती, ज़हर-ज़हर उतारता है। सुना नहीं चेचक व ताऊ'न के टीके उन ही बीमारियों के ज़हर से बनाए जाते हैं। फिर यह ख़ुदा परस्त लोग नया इलाज क्यों नहीं करते। मैं ईसाइयों, आर्यों और मुसलमानों को अपनी ईजाद-ए-जदीद से आगाह करना
टब का समुंदर
आज सुबह जो मैं नहाने के लिए अंदर गया तो क्या देखता हूँ कि एक सब्ज़ रंग का टिड्डा टब में तैर रहा है। कहता होगा मैं समुंदर में गोते खा खाकर ऐ जान तेरी याद करता हूँ। ग़ारत करे ख़ुदा तुझको और तेरी जान-ए-जानाँ को मेरे पानी को घिनावना कर दिया। देखो तो
प्यारी डकार
कौंसिल की मेंबरी नहीं चाहता, क़ौम की लीडरी नहीं मांगता,अर्ल का ख़िताब दरकार नहीं। मोटर और शिमला की किसी कोठी की तमन्ना नहीं। मैं तो ख़ुदा से और अगर किसी दूसरे में देने की क़ुदरत हो तो उससे भी सिर्फ़ एक “डकार” तलब करता हूँ। चाहता ये हूँ कि अपने तूफ़ानी
जिगर-ए-निर्ख़ के टुकड़े
काग़ज़ की गिरानी हिंदोस्तान में जितने कारख़ाने काग़ज़ बनाने के हैं वो रात दिन बेचारी कलों को चलाते हैं। पल भर का आराम नहीं लेने देते। घास और गूदड़ ढूंडते फिरते हैं जिनसे काग़ज़ बनाया जाता है। इस पर भी पूरी नहीं पड़ती। काग़ज़ का भाव दिन-ब-दिन घड़ी-ब-घड़ी, मिनट-ब-मिनट,
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1922
-