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Krishna Kumar Toor's Photo'

कृष्ण कुमार तूर

1933 | धर्मशाला, भारत

प्रमुख आधुनिक शायर/साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

प्रमुख आधुनिक शायर/साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

कृष्ण कुमार तूर के शेर

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मैं तो था मौजूद किताब के लफ़्ज़ों में

वो ही शायद मुझ को पढ़ना भूल गया

मैं वहम हूँ कि हक़ीक़त ये हाल देखने को

गिरफ़्त होता हूँ अपना विसाल देखने को

सफ़र हो तो ये लुत्फ़-ए-सफ़र है बे-मअ'नी

बदन हो तो भला क्या क़बा में रक्खा है

बंद पड़े हैं शहर के सारे दरवाज़े

ये कैसा आसेब अब घर घर लगता है

कब तक तू आसमाँ में छुप के बैठेगा

माँग रहा हूँ मैं कब से दुआ बाहर

बहुत कहा था कि तुम अकेले रह सकोगे

बहुत कहा था कि हम को यूँ दर-ब-दर करना

उन से क्या रिश्ता था वो क्या मेरे लगते थे

गिरने लगे जब पेड़ से पत्ते तो मैं रोया बहुत

उस को खोना अस्ल में उस को पाना है

हासिल का ही परतव है ला-हासिल में

एक दिया दहलीज़ पे रक्खा भूल गया

घर को लौट के आने वाला भूल गया

मैं किस से करता यहाँ गुफ़्तुगू कोई भी था

नहीं था मेरे मुक़ाबिल जो तू कोई भी था

सब का दामन मोतियों से भरने वाले

मेरी आँख में भी इक आँसू रखना था

वो भी मुझ को भुला के बहुत ख़ुश बैठा है

मैं भी उस को छोड़ के 'तूर' निहाल हुआ

इक आग सी अब लगी हुई है

पानी में असर कहाँ से आया

सारी उम्र किसी की ख़ातिर सूली पे लटका रहा

शायद 'तूर' मेरे अंदर इक शख़्स था ज़िंदा बहुत

दोनों बहर-ए-शोला-ए-ज़ात दोनों असीर-ए-अना

दरिया के लब पर पानी दश्त के लब पर प्यास

मैं जब पेड़ से गिर के ज़मीं की ख़ाक हुआ

तब इक आलम-ए-मौहूम समझ में आया

क्यूँ मुझे महसूस ये होता है अक्सर रात भर

सीना-ए-शब पर चमकता है समुंदर रात भर

ख़ुद ही चराग़ अब अपनी लौ से नालाँ है

नक़्श ये क्या उभरा ये कैसा ज़वाल हुआ

ये असरार है ज़ाहिर उस के होने का

मंज़र हो या पस-मंज़र गहरा पानी

यहाँ किसी को किसी की ख़बर नहीं दरकार

अजब तरह का ये सारा जहान हो गया है

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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