मसूद तन्हा

अशआर 33

आज आओ इस तरह जैसे कि पहली बार तुम

गए थे बे-ख़याली में सँवर के सामने

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दोस्त ही ख़ूबियाँ बताते हैं

दोस्त ही ख़ामियाँ निकालते हैं

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क़ाफ़िले रह में लूटने वाला

राहज़न एक रहनुमा निकला

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बहाने तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ के किस ने ढूँडे थे

ये सारे हल्क़ा-ए-याराँ में फ़ैसले होंगे

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मैं जब भी लड़ा हक़ के लिए अपने अदू से

मैदाँ में रही कोई तलवार सलामत

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ग़ज़ल 28

नज़्म 6

पुस्तकें 10

 

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