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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मिर्ज़ा अतहर ज़िया

1981 - 2018 | आज़मगढ़, भारत

मिर्ज़ा अतहर ज़िया

ग़ज़ल 14

अशआर 15

क्या पता जाने कहाँ आग लगी

हर तरफ़ सिर्फ़ धुआँ है मुझ में

तू ने वक़्त पलट कर भी कभी देखा है

कैसे हैं सब तिरी रफ़्तार के मारे हुए लोग

तेरी दहलीज़ पे इक़रार की उम्मीद लिए

फिर खड़े हैं तिरे इंकार के मारे हुए लोग

मैं अधूरा सा हूँ उस के अंदर

और वो शख़्स मुकम्मल मुझ में

हरीम-ए-दिल में ठहर या सरा-ए-जान में रुक

ये सब मकान हैं तेरे किसी मकान में रुक

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