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रफ़ीक़ हुसैन की कहानियाँ
गौरी हो गौरी
यह इंसान और जानवरों के बीच एक मोहब्बत भरे रिश्ते की कहानी है। गौरी नामक गाय शिविर से अपनी गाँव लौटती है और बाढ़ में फँसी अपनी मालिक की बेटी को बचाती है। इसके बाद वह अपने बछड़े के पास जाती है और गौरी की पीठ पर बैठी लड़की बछड़े का रस्सा खोलकर उसे भी बचा लेती है।
कलुवा
यह एक कुत्ते की अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी, चाहत और मोहब्बत के लिए तड़पने की कहानी है। पिल्ले से कुत्ता होने के दौरान कलुवा को दो ही ऐसे मालिक मिले थे जिनसे उसे गहरा लगाव हो गया था। एक था स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा और दूसरी थी कहार की बेटी। मगर दोनों में से किसी के पास भी वह ज़्यादा अर्सा नहीं रह सका था। दोबारा लौटने पर कहार की बेटी उसे पहचान नहीं सकी थी और स्कूल के बच्चे को तालाब में डूबने से बचाने के लिए उसने ख़ुद अपनी जान दे दी थी।
बे-ज़बान
यह कहानी सर्कस की एक घोड़ी और उस पर सवार होने वाली नौ उम्र गूंगी लड़की के आपसी लगाव और मोहब्बत की दास्तान बयान करती है। घोड़ी पर सवार होने वाली लड़की की ख़ूबसूरती के क़िस्से सुनकर एक नवाब उसे ख़रीद लेता है और घोड़ी को उसका मालिक एक ताँगे वाले को बेच देता है। पंद्रह साल बाद इत्तेफ़ाक से वह लड़की और घोड़ी फिर मिलते हैं और दोनों एक साथ जान दे देते हैं।
कफ़्फ़ारा
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है, जो ज़मींदार के बेटे का क़त्ल करके तराई के जंगलों में छुप जाता है। उन्हीं जंगलों में शेर-शेरनी का एक जोड़ा भी रहता है। एक रोज़ शेरनी उस शख़्स को मार डालती है तो शेर उसे छोड़कर चला जाता है। शेरनी और उसके बच्चों को बस्ती वाले मार डालते हैं और शेर को पिंजरे में बंद कर लेते हैं। पिंजरे में बंद शेर जब दुनिया के निज़ाम पर ग़ौर करता है और सोचता है कि या रब यह दुनिया किन गुनाहो का कफ़्फ़ारा है।
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