शायर जमाली
ग़ज़ल 27
अशआर 5
छुप गया ईद का चाँद निकल कर देर हुई पर जाने क्यों
नज़रें अब तक टिकी हुई हैं मस्जिद के मीनारों पर
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और अगर हो न सके कुछ भी उजालों की सबील
इक चराग़ अपने लहू से ही जला दें हम लोग
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यूँ भी कट सकते हैं ये तिश्ना-लबी के लम्हात
बैठ कर बज़्म में साक़ी को दुआ दें हम लोग
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जिस के साए में तअ'स्सुब की तपिश शामिल हो
वक़्त कहता है वो दीवार गिरा दें हम लोग
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