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कूज़ा-गर

ऐ कूज़ा-गर!

फ़रहत एहसास

आख़िरी दिन की तलाश

ख़ुदा ने क़ुरआन में कहा है

मोहम्मद अल्वी

मुझे कहना है

नहीं मैं यूँ नहीं कहता

बशर नवाज़

गुम-शुदा लम्हे की तलाश

किसी आँख के पपोटों के

सरवत ज़ेहरा

बद-शुगूनी

अजब घड़ी थी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तू

वहाँ जिस जगह पर सदा सो गई है

मुनीर नियाज़ी

एक लड़की शादाँ

इक लड़की थी छोटी सी

हफ़ीज़ जालंधरी

ख़्वाब का दर बंद है

मेरे लिए रात ने

शहरयार

तजज़िया

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन

जाँ निसार अख़्तर

तर्ग़ीब

ये एक लम्हा जो अपने हाथों में चाँद सूरज लिए खड़ा है

साक़ी फ़ारुक़ी

मता-ए-ग़ैर

मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली

साहिर लुधियानवी

अन-कही

तुझ को मालूम नहीं तुझ को भला क्या मालूम

हिमायत अली शाएर

नया जन्म

अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

आईना-दर-आईना

मैं आज सवेरे जाग उठा

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

बैठा है मेरे सामने वो

बैठा है मेरे सामने वो

फ़हमीदा रियाज़

मैं और बादल

शाम का बादल नए नए अंदाज़ दिखाया करता है

मुनीर नियाज़ी

ये खेल क्या है

मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है

जावेद अख़्तर

किताबें

किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से

गुलज़ार

ख़ूब-सूरत मोड़

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

साहिर लुधियानवी

गिरहें

मुझ को भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे

गुलज़ार

याद

दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

यक़ीन से यादों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता

तुम ने जो फूल मुझे रुख़्सत होते वक़्त दिया था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़िंदगी से डरते हो

ज़िंदगी से डरते हो!

नून मीम राशिद

भूक

आँख खुल गई मेरी

जावेद अख़्तर

रात और रेल

फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई

असरार-उल-हक़ मजाज़

एक और रात

रात चुप-चाप दबे पाँव चले जाती है

गुलज़ार

फ़नकार

मैं ने जो गीत तिरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे

साहिर लुधियानवी

अंदेशा

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

कफ़ील आज़र अमरोहवी

ब-नाम-ए-इब्न-ए-आदम

अब तक तुम से कहा गया है

अज़ीज़ क़ैसी

दस्तक

सुब्ह सुब्ह इक ख़्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला' देखा

गुलज़ार

मज़दूर लड़की

वो इक मज़दूर लड़की है

सलाम मछली शहरी

आब ओ गिल

मुझे याद पड़ता है इक उम्र गुज़री

शाज़ तमकनत

अकेले

किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो

गुलज़ार

पहली मौत

रात भर नर्म हवाओं के झोंके

महमूद अयाज़

तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त

प्यार की आख़िरी पूँजी भी लुटा आया हूँ

राजेन्द्र नाथ रहबर

आदमी बुलबुला है

आदमी बुलबुला है पानी का

गुलज़ार

किर्चें

टुकड़ा इक नज़्म का

गुलज़ार

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए सँभाल कर रक्खा था

ख़ुर्शीद अकरम

ज़िंदा पानी सच्चा

पुल के नीचे झाँक के देखो आज नदी तूफ़ानी है

साक़ी फ़ारुक़ी

मुद्दत के बाद

मुद्दत के बाद तुम से मिला हूँ तो ये खुला

हिमायत अली शाएर

पेश-ओ-पस

उस के आगे सन्नाटा है

फ़रहत एहसास

तआक़ुब

सुब्ह से शाम हुई और हिरन मुझ को छलावे देता

गुलज़ार

मुम्ताज़

क़स्र-ए-शाही से ये हुक्म सादिर हुआ लाड़काने चलो

हबीब जालिब

अच्छा इश्क़

अच्छे इश्क़ के लिए

नोमान शौक़

आज की रात

देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात

असरार-उल-हक़ मजाज़

निरवान

इक ख़ुशबू दर्द-ए-सर की मुरझाई कलियों को खिलाए जाती है

बाक़र मेहदी

तुम नहीं आए थे जब

तुम नहीं आए थे जब तब भी तो मौजूद थे तुम

अली सरदार जाफ़री

नौ-जवान ख़ातून से

हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था

असरार-उल-हक़ मजाज़

शेर कह लेने के बाद

जैसे तुम को छू लिया है

फ़रहत एहसास

ऐ मेरे सर-सब्ज़ ख़ुदा

बैन करने वालों ने

सारा शगुफ़्ता

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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