कैफ़ी संभली
ग़ज़ल 9
नज़्म 2
अशआर 1
हवा चली तो कोई नक़्श-ए-मोतबर न बचा
कोई दिया कोई बादल कोई शजर न बचा
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere