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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मौलाना जलालुद्दीन रूमी

प्रकाशक : मुंशी नवल किशोर, लखनऊ

मूल : लखनऊ, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1927

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी, अनुवाद, मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन

उप श्रेणियां : मसनवी, शायरी

पृष्ठ : 399

अनुवादक : मौलवी अब्दुल मजीद ख़ान

सहयोगी : रामपुर रज़ा लाइब्रेरी,रामपुर

bostan-e-marifat
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पुस्तक: परिचय

मौलाना रूम की मसनवी मानवी को वैश्विक और उत्कृष्ट साहित्य का अद्भुत और अलौकिक नमूना कहा जा सकता है जिसे पहलवी भाषा का क़ुरान की उपाधि भी प्राप्त है जिस में मौलाना के बक़ौल क़ुरान का मगज़ पद्य के रूप में बयान किया गया है। इस मसनवी का आज दुनिया की हर बड़ी भाषा में अनुवाद हो चुका है, इसी कड़ी की एक लड़ी मौलवी अब्दुल मजीद खान की उर्दू भाषा में व्याख्या की है जिसे मुंशी नवलकिशोर प्रकाशन ने 1927 में लखनऊ से प्रकाशित किया था। यह मसनवी का तीसरा खण्ड है (सारे खण्ड देखने के लिये रेख्ता की वेबसाइट पर जाएँ) मौलाना ने इस में तसव्वुफ़ और इरफ़ान के उन इल्हामात और अंतर्ज्ञान को बयान किया है जो गोयाकि तसव्वुफ़ की मेराज हैं।

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लेखक: परिचय

पूरा नाम जलालुद्दीन रूमी. इनकी मसनवी को क़ुरआनी पहलवी भी कहते हैं. इसमें 26600 दो-पदी  छंद हैं , कहा जाता है कि निशापुर में इनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी संत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार से भी हुई थी.  फ़रीदुद्दीन अत्तार ने इन्हें अपनी इलाहीनामा की एक प्रति भेंट भी की थी.  रूमी की दो शादियाँ हुईं, जिनसे इन्हें दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई थी.  विनफ़ील्ड के अनुसार रहस्यवाद में रूमी की बराबरी कोई नहीं कर सकता. रूमी शम्स तबरेज़ को अपना मुर्शिद मानते थे और उनकी रहस्यमयी मृत्यु के बाद उन्होंने अपने दीवान का नाम भी अपने मुर्शिद के नाम पर ही रखा. रूमी की मसनवी दुनिया भर में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में शुमार होती है|

प्रमुख रचनायें

१. मसनवी

२. दीवान-ए-शम्स तबरेज़

 

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