aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
سید سبط علی صبا کی شخیت میں سادگی کی ساتھ ساتھ ایک اکھڑپن بھی نظر آتا ہے اور کم وبیش یہی وصف ان کی شاعری میں بھی دیکھی جاتی ہے۔ ان کے مجموعہ کلام 'ابر سنگ' کی شاعری میں روزمرہ کے تجربے اور اخلاقی ناقدری پر ان کی جھنجھلاہٹ کو شدت کے ساتھ محسوس کیا جا سکتا ہے۔
सिब्ते अली सबा 11 नवंबर 1935 को सियालकोट में पैदा हुए. आरंभिक शिक्षा रुड़की (भारत) और सियालकोट में प्राप्त की. 1953 में पाकिस्तानी फ़ौज में शामिल हुए. उम्र के आखिरी दिनों में पाकिस्तान आर्डिनेंस फैक्ट्रीज वाघा कैंट में मुलाज़िम रहे. 14 मई 1980 को देहांत हुआ. देहांत के बाद उनका काव्य संग्रह ‘तश्त-ए-मुराद’ के नाम से अख़बार प्रकाशित हुआ.
सिब्ते अली सबा ने कई ऐसे शे’र कहे हैं जो कहावत के रूप में प्रचलित हो गये हैं. इसके अलावा भी उनकी शाइरी ज़िन्दगी के नये रंगों की सैर का रूपक है.
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