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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : जमशेद

प्रकाशक : आलोकपर्व प्रकाशन

मूल : दिल्ली, भारत

प्रकाशन वर्ष : 2022

भाषा : Devnagari

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : हाइकु

पृष्ठ : 229

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 978-93-84597-61-0

सहयोगी : जमशेद

हाइकु
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लेखक: परिचय

जमशेद (पूरा नाम: मोहम्मद जमशेद)

जन्म स्थान: नगीना, बिजनौर, यूपी

जन्म वर्ष: 1958

शिक्षा: एम.ए, इलाहाबाद विश्वविद्यालय (गोल्ड मेडलिस्ट)

पहले एक वर्ष तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लेक्चरर रहे फिर सिविल सेवा में,

भारतीय रेलवे बोर्ड के सदस्य और भारत सरकार के सचिव के पद से सेवानिवृत्त,

वर्तमान में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के सदस्य,

जमशेद अंग्रेज़ी-साहित्य के छात्र रहे हैं। आधुनिक और शास्त्रीय अंग्रेज़ी कवियों का उन पर प्रभाव है। फ़ैज़, फ़िराक़, साहिर, कैफ़ी, हबीब जालिब, मुनीर नियाज़ी आदि जैसे उर्दू-शायर और हिन्दी-कवि अज्ञेय, दुष्यंत कुमार, रामधारी सिंह दिनकर आदि उन के मुताले में रहे हैं.

जमशेद एक शौक़िया कवि एवं लेखक और पेशे से सिविल सर्वेंट हैं अपने तजुर्बों और ज़िन्दगी को बिना चश्मे के देखने और अभिव्यक्त करने का प्रयास उन की रचनाओं में साफ़ तौर से देखा जा सकता हैं हिस्दुस्तानी में लिखने का प्रयोग जिस में आम बोल-चाल की भाषा गुंथी होती है, उनकी रचनाओं की विशेषता है

जमशेद की दो किताबें मंज़र-ऐ-आम पर आ चुकी हैं। पहली किताब स्याही जो 2018 में, और दूसरी किताब हाइकु 2022 में पब्लिश हुई। अंग्रेजी कविता का अगला संग्रह प्रकाशनाधीन है।

‘स्याही नज्मों, ग़ज़लों, गीतों और हाइकु का मजमुआ है, ‘स्याही मौजूदा दौर के अहम मुद्दों का सच्चा आईना है।

दूसरी किताब ‘हाइकु’ है, इस किताब में एक हज़ार हाइकु कविताएँ शामिल हैं, जो हमारे दौर की तमाम उलझनों, संवेदनाओं, मूल्यों और सवालों को हमारे सामने लाती हैं। ज़िन्दगी का शायद ही कोई अहम पहलु इन से अछूता रहा हो। ‘हाइकु’ एक जापानी तर्ज़-ए-सुख़न है ये छोटी बहर की मुख़्तसर नज़्म होती है जो सिर्फ तीन मिसरों पर मुश्तमिल होती है। इस में एक ख़्याल मुकम्मल करना होता है। इस नज़्म में रदीफ़ क़ाफ़िए की क़ैद नहीं होती इस सिन्फ़ को उर्दू-हिंदी में बहुत ज्यादा मक़बूलियत नहीं मिली, लेकिन जब समय बदलता है तो उसके साथ सब कुछ बदल जाता है। मनुष्य की सोच के कोण बदल जाते हैं, विचार और प्रवृत्तियाँ बदल जाती हैं, आज तेज़ रफ़्तार शोशल माडिया का ज़माना है, हर कोई वक़्त की तंगी को महसूस करता है, कुछ कहने के लिए कुछ ही शब्द काफी होते हैं, इस लिए ये सिन्फ़ आज के ज़माने से बिलकुल मुताबिक है

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