नज़्म तबातबाई, सय्यद अ’ली हैदर (1852-1933) उर्दू के अ’लावा अ’रबी और फ़ारसी की गहरी महारत थी। अंग्रेज़ी भी जानते थे। पहले कलकत्ता में वाजिद अ’ली शाह के शहज़ादों को पढ़ाने का काम किया और फिर हैदराबाद पहुँचे जहाँ निज़ाम कालेज में उस्ताद मुक़र्रर हुए। ‘दारुत्तर्जुमा’ में अनुवाद का काम भी किया। उनकी किताब ‘शर्ह-ए-दीवान-ग़ालिब बहुत मशहूर हैं, जिस में उन्होंने ग़ालिब को समझने-समझाने का एक नया अंदाज क़ाएम किया है।
यदि आप अन्य पाठकों की पसंद में रुचि रखते हैं, तो रेख़्ता पाठकों की पसंदीदा उर्दू पुस्तकों की इस सूची को देखें।
पूरा देखिए