aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
मो. मूसा ख़ान‘अशान्त बाराबंकवी’ का जन्म 15 जुलाई 1959 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के नगर पंचायत बंकी में हुआ। वे हिंदी और उर्दू साहित्य की अनेक विधाओं में सक्रिय एक बहुआयामी और अनुभवी रचनाकार हैं। साहित्य के क्षेत्र में उनका उपनाम ‘अशान्त बाराबंकवी’ के रूप में प्रसिद्ध है।
उनकी रचनात्मक यात्रा विविध विधाओं में फैली हुई है। ग़ज़ल, कविता, कहानी, उपन्यास और रेडियो नाटक, हर विधा में उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। उनकी ग़ज़लों का संकलन "पहली बरसात" और "लेकिन ये सच है" पाठकों और श्रोताओं के बीच विशेष रूप से सराहा गया है। उपन्यास लेखन में "गोदनावाला", "त्रासदी" और "ढाई आखर" जैसी कृतियाँ उनके गंभीर साहित्यिक चिंतन की मिसाल हैं। उनकी कहानियों का संग्रह "वह सांवली लड़की" और रेडियो नाटकों की पुस्तक "आधे अधूरे ख़्वाब" ने भी साहित्य जगत में उनकी अलग पहचान बनाई है। कविता संग्रह "मर गई संवेदना" और "मैं सपने बुनता हूँ" मानवीय भावनाओं और सामाजिक यथार्थ की गूँज लिए हुए हैं।
अपने विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया है। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा उन्हें साहित्य भूषण सम्मान (2.50 लाख रुपये) तथा भगवती चरण वर्मा दीर्घकालिक साहित्य सेवा सम्मान (1 लाख रुपये) प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें महाराष्ट्र से एहसास जीवन गौरव अंतर्राष्ट्रीय सम्मान (31,000 रुपये), द्वितीय कल्पनाथ सिंह स्मृति सम्मान (1 लाख रुपये), उत्तर प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 1989 में उत्कृष्ट विकलांग कर्मचारी सम्मान, और भारत-नेपाल साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच द्वारा संचार श्री सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
आज भी अशान्त बाराबंकवी साहित्य के माध्यम से समाज को जागरूक करने और मानवीय संवेदनाओं को जीवंत बनाए रखने का कार्य कर रहे हैं। उनका साहित्यिक सफ़र प्रेरणा और संघर्ष की मिसाल है।