aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
असना बद्र, 26 जनवरी 1971 को बरेली, उतर प्रदेश, भारत में पैदा हुईं। असना बद्र की इब्तिदाई तालीम हमीरपुर में हुई। उन्होंने एम.ए. उर्दू कानपुर यूनिवर्सिटी से किया। एम.ए. में टाॅप किया। पेशे के एतिबार से वो एक उस्तानी हैं। फ़िलहाल रियाद, सऊदी अरब में मुक़ीम हैं और वहाँ दिल्ली पब्लिक स्कूल में उर्दू पढ़ाती हैं। उनका मजमूआ-ए-कलाम “मंज़र-नामा” 2014 में शाए हुआ था, जिसने काफ़ी पज़ीराई हासिल की।
अस्ना बद्र की शायरी तानीसियत के मौजूदा शोर-शराबे में एक बिलकुल मुन्फ़रिद सक़ाफ़ती निस्वानी तज्रबे की सूरतगरी करती नज़र आती है। एक अर्से से हिंद-ओ-पाक के अदबी रसाइल में उनका कलाम शाए हो रहा है। उनकी कुछ ग़ज़लें पुराने रसाइल में नज़र आती हैं, लेकिन बुनियादी तौर पर नज़्म-गो शायरा हैं। पाबंद और आज़ाद नज़्म पर यकसाँ क़ुदरत रखती हैं। गाहे बह गाहे अंग्रेज़ी नज़्मों के तराजुम भी करती हैं।
मौसीक़ियत, रवानी और शेरी सदाक़त उनकी नज़्मों की पहचान है। एक पुर-गो शायरा हैं, मुशायरों में शिरकत नहीं करतीं। फ़ेसबुक पर बहुत फ़आल और मक़बूल हैं। उनकी नज़्म “वो कैसी औरतें थीं” बहुत मक़बूल हो कर उनकी पहचान बन गई है।