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अब जो बिखरे भी तो चमकेंगे सितारों की तरह

हरीश कुमार

अब जो बिखरे भी तो चमकेंगे सितारों की तरह

हरीश कुमार

MORE BYहरीश कुमार

    अब जो बिखरे भी तो चमकेंगे सितारों की तरह

    इक नुमाइश ही सही आईना-पारों की तरह

    सर्द झोंके की हिमाक़त पे वो डाली की लचक

    मुझ को लगती तिरे मासूम इशारों की तरह

    याद आते हैं जो बरसात में भीगे लम्हे

    ज़ख़्म रह-रह के दमकते हैं शरारों की तरह

    तेरे गेसू तिरे अबरू तिरी पुर-शोख़ नज़र

    मेरी ग़ज़लों में चमकते हैं सितारों की तरह

    मुंतज़िर कोई मिले मुझ को भी प्यासी धरती

    मैं भी दिल खोल के बरसूँगा बहारों की तरह

    उस की यादों से है रौशन मिरे दिल की बस्ती

    मेरे महबूब के पुर-नूर दयारों की तरह

    ज़ीस्त गुज़री है मिरी ग़म के थपेड़े सह कर

    किसी सागर के सहनशील किनारों की तरह

    जब तसव्वुर में उभरता है वो ख़ुशबू सा बदन

    दिल-ए-वीरान सँवरता है नज़ारों की तरह

    कभी भूले से मिरा दर्द भरा दिल छुआ

    यूँ दिखावे को तो मिलता है वो प्यारों की तरह

    यूँ तो आते हैं मिरी सम्त कई ग़म के भँवर

    पर दुआएँ हैं मिरे गिर्द हिसारों की तरह

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