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अबद के तश्त में कुछ फूल और सितारे लिए

शाहिद माकुली

अबद के तश्त में कुछ फूल और सितारे लिए

शाहिद माकुली

MORE BYशाहिद माकुली

    अबद के तश्त में कुछ फूल और सितारे लिए

    ये मैं हूँ दूर से आया हुआ तुम्हारे लिए

    अजब थी उन से मुलाक़ात पर तपाक मिरी

    वो मेरे ख़स-कदे में गए शरारे लिए

    दयार-ए-गिर्या की गलियों में ऐसी फिसलन है

    बशर गुज़रते हैं दीवारों के सहारे लिए

    बिछा के इन को मैं चाहे जिधर उतर जाऊँ

    रवाँ हूँ नाव में दरिया के दो किनारे लिए

    बुलंदी से गिरे मज़मून की तरह है हयात

    लुढ़कती फिरती है लग़्ज़िश के इस्तिआ'रे लिए

    हज़ार सुब्ह-ए-सफ़र नाश्ते की मेज़ पे थी

    मैं गर्म-ए-सैर हुआ नूर के हरारे लिए

    जाने अब्र मिरा किस तरफ़ रवाना है

    सियाह रात के पर्दे में बर्क़-पारे लिए

    ख़ुदा से ख़ौफ़-ज़दा इतना कर दिया गया था

    कि हम ने साँस भी दुनिया में डर के मारे लिए

    यही थी शब जो ज़मीं से गई थी नम ले कर

    अब आसमाँ से चली रही है तारे लिए

    बहुत सी ख़ुद में तमासील जम्अ' कर ली हैं

    कुछ अपने वास्ते कुछ ख़ास कर तुम्हारे लिए

    मैं ढूँड लाया कहीं से किनाया फ़र्दा का

    कहीं से गुज़रे हुए वक़्त के इशारे लिए

    समाअ' के लिए सरगोशियाँ उठा लाया

    नज़र के वास्ते फ़ितरत से कुछ नज़ारे लिए

    सब एक साथ कहीं लापता हुए 'शाहिद'

    बुलंद करनी है किस ने सदा हमारे लिए

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