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अहल-ए-हक़ के जो तरफ़-दार नहीं बन सकते

मुज़फ़्फ़र रज़्मी

अहल-ए-हक़ के जो तरफ़-दार नहीं बन सकते

मुज़फ़्फ़र रज़्मी

MORE BYमुज़फ़्फ़र रज़्मी

    अहल-ए-हक़ के जो तरफ़-दार नहीं बन सकते

    वो किसी और के ग़म-ख़्वार नहीं बन सकते

    यूँ तो सब कुछ है तिरी गोद में तहज़ीब-ए-जदीद

    मेरे बच्चे मिरा मे'यार नहीं बन सकते

    हम तो हर घर में हैं इक प्यार के बादल की तरह

    हम किसी सहन की दीवार नहीं बन सकते

    ख़ून से रोज़ बुझाते हैं जो नफ़रत के चराग़

    वतन वो तिरे ग़द्दार नहीं बन सकते

    अपने अज्दाद की 'अज़्मत जो भुला देते हैं

    वो कभी साहिब-ए-किरदार नहीं बन सकते

    लाख मजबूर करे वक़्त मगर अहल-ए-ज़मीर

    किसी ज़ालिम के तरफ़-दार नहीं बन सकते

    कम हो तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार अगर दोनों तरफ़

    सुल्ह के रास्ते हमवार नहीं बन सकते

    मेरे ख़ाके मिरे अफ़्कार चुराने वाले

    मेरी 'अज़्मत मिरा मे'यार नहीं बन सकते

    हम त'अस्सुब की सलीबों पे भी सच बोलेंगे

    आप की तरह अदाकार नहीं बन सकते

    ताज पर ख़त्म हुई प्यार की 'अज़्मत 'रज़्मी'

    मक़बरे अब कभी शहकार नहीं बन सकते

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