भटक जाते हैं रहबर रहबरी में
भटक जाते हैं रहबर रहबरी में
कुछ ऐसी मंज़िलें हैं ज़िंदगी में
पता कैसे मिले उस लापता का
जो गुम रहता हो अपने आप ही में
ख़बर-दार ऐ मिरी वहशत ख़बर-दार
कोई लग़्ज़िश न हो दीवानगी में
न यूँही बे-ख़ुदी में गुम है कोई
निहाँ राज़-ए-ख़ुदी है बे-ख़ुदी में
फ़रिश्ते भी समझने से हैं क़ासिर
बशर क्या है लिबास-ए-आदमी में
तुम्हें है रौशनी पर नाज़ लेकिन
निहाँ है तीरगी भी रौशनी में
हसीं तख़्ईल की पैकर-तराशी
न हो 'कौसर' तो क्या है शाएरी में
- पुस्तक : Junoon Ki Aagahi (पृष्ठ 112)
- रचनाकार : Kausar Siwani
- प्रकाशन : Arshia Publications (2012)
- संस्करण : 2012
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