दर्द का मेरे मुदावा वो करें या न करें
मैं हूँ मशकूर दम-ए-नज़अ जो पर्दा न करें
मय से लबरेज़ इनायत जो वो पैमाना करें
वाइज़ा नोश उसे रिंद करें या न करें
इश्क़-ए-सादिक़ जो ज़रा अपना असर दिखला दे
बे-हिजाब आएँ नज़र वो कभी पर्दा न करें
फ़स्ल-ए-गुल आए भी सय्याद अगर गुलशन में
हम वो बुलबुल हैं रिहाई की तमन्ना न करें
तेरे कूचे में जो मिल जाए जगह मरक़द की
बाग़-ए-फ़िरदौस की उश्शाक़ तमन्ना न करें
जल्वा-गर दिल में है तू जिन के किसी सूरत वो
रुख़ हरम का न करें अज़्म-ए-कलीसा न करें
तेरे कूचे में मयस्सर है जिन्हें रोज़ तवाफ़
का'बे की सम्त वो भूले से भी सज्दा न करें
उस का दीदार किसी तरह नहीं मुमकिन है
शक्ल-ए-आईना जो हम दिल को मुसफ़्फ़ा न करें
यार बालीं पे है ठहरें मलक-उल-मौत ज़रा
रूह के क़ब्ज़ का कुछ देर इरादा न करें
दम का मेहमान हूँ दम लब पे है ऐ जान-ए-जहाँ
आप घर जाने का इस वक़्त इरादा न करें
मरते दम नाम तिरा मुँह से निकल जाए अगर
फिर नकीरैन लहद में कोई झगड़ा न करें
दैर-ओ-का'बा तो हक़ीक़त में हैं उस के घर में
बाहमी गब्र-ओ-मुसलमाँ कोई झगड़ा न करें
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