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धड़का है राह-ए-ग़म में मिरा दिल जगह-जगह

साहिर भोपाली

धड़का है राह-ए-ग़म में मिरा दिल जगह-जगह

साहिर भोपाली

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    धड़का है राह-ए-ग़म में मिरा दिल जगह-जगह

    दा'वा हुआ है ज़ब्त का बातिल जगह-जगह

    खोया गया हूँ राह-ए-वफ़ा में कुछ इस तरह

    फिरती है ढूँढती मुझे मंज़िल जगह-जगह

    बस इक निगाह-ए-लुत्फ़ की हसरत लिए हुए

    फिरता हूँ बन के हुस्न का साइल जगह-जगह

    तूफ़ान-ए-बहर-ए-ग़म में यूँही डूब-डूब कर

    पैदा किए हैं इश्क़ ने साहिल जगह-जगह

    जीते बने है ग़म में मरते बने है अब

    दरपेश है बस इक यही मुश्किल जगह-जगह

    रंग-ए-शफ़क़ ये ताबिश-ए-अंजुम ये बू-ए-गुल

    है ख़ून-ए-आरज़ू मिरा शामिल जगह-जगह

    देखे तो कैसे हुस्न-ए-हक़ीक़त-निशाँ को आँख

    पर्दे हैं एहतियात के हाइल जगह-जगह

    है ज़र्रा-ज़र्रा ख़ाक का इक हश्र दरकिनार

    इरफ़ान-ए-ग़म हुआ मुझे हासिल जगह-जगह

    आलम वो शौक़ का है कि रुकते नहीं क़दम

    माना कि ग़म है दिल से मुक़ाबिल जगह-जगह

    इस जुस्तुजू-ए-हुस्न ने आवारा कर दिया

    फिरता है मुझ को ले के मिरा दिल जगह-जगह

    'साहिर' मुझे मलाल किसी से हो किस लिए

    मेरे सुख़न के आज हैं क़ाइल जगह-जगह

    स्रोत:

    Sada-e-Dil (Pg. 56)

    • लेखक: साहिर भोपाली
      • प्रकाशक: हाली पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
      • प्रकाशन वर्ष: 1959

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