हर आह बे-असर ही नहीं बा-असर भी है
हर आह बे-असर ही नहीं बा-असर भी है
मुद्दत से जो इधर था वो आलम उधर भी है
गुलशन के पासबाँ तुझे इतनी ख़बर भी है
तेरे चमन पे और किसी की नज़र भी है
माना कि हर रविश है बहारों से हम-कनार
लेकिन चमन में आज कोई दीदा-वर भी है
तन्हा सही मैं राह-ए-जुनूँ में रवाँ-दवाँ
महसूस हो रहा है कोई हम-सफ़र भी है
जब से हुई हैं तिरे करम की नवाज़िशें
दिल पाश-पाश ही नहीं ज़ख़्मी जिगर भी है
कहने से पहले इतना तो लाज़िम है सोचना
जो बात मुँह से निकलेगी वो बे-ज़रर भी है
'ज़ैदी' तू हो तो जाता है हर ख़ुश-नवा के साथ
कुछ इम्तियाज़-ए-राहज़न-ओ-राहबर भी है
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