कभी कभार भी कब साएबाँ किसी ने दिया
कभी कभार भी कब साएबाँ किसी ने दिया
न हाथ सर पे ब-जुज़ आसमाँ किसी ने दिया
निसार मैं तिरी यादों की छतरियों पे निसार
न इस तरह का कभी साएबाँ किसी ने दिया
हमारे पाँव भी अपने नहीं हैं और सर भी
ज़मीं कहीं से मिली आसमाँ किसी ने दिया
बिका था कल भी तो इक ज़ेहन चंद सिक्कों में
सनद किसी को मिली इम्तिहाँ किसी ने दिया
उलझ पड़ा था वो मालिक-मकान से इक दिन
फिर इस के बा'द न उस को मकाँ किसी ने दिया
तू इतने ग़म को सँभालेगा किस तरह 'नासिक'
अगर तुझे भी ग़म-ए-बेकराँ किसी ने दिया
- पुस्तक : Adab-o-Saqafat International (पृष्ठ 63)
- रचनाकार : Shakeelsarosh
- प्रकाशन : Misal Publishers Raheem Center Press Market Ameen Pur Bazar, Faisalbad, Pakistan
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