कहीं बदन तिश्नगी का सहरा कहीं बदन बे-कनार दरिया
कहीं बदन तिश्नगी का सहरा कहीं बदन बे-कनार दरिया
रफ़ाक़तों का हरीस सहरा कुदूरतों का शिकार दरिया
चनाब के ख़ुश्क साहिलों पर गुज़र गई ख़ुश्क-लब जवानी
हम उस को पाते तो कैसे पाते कि वो था दरिया के पार दरिया
ज़रा सी इक आबजू से हम ने बुझा ली प्यास अपनी नारसी की
हमारी सैराब ख़्वाहिशों को मिला करें अब हज़ार दरिया
ख़िज़ाँ के मौसम की चीरा-दस्ती बदन के कपड़े भी ले गई है
लिबास था अपनी बे-ज़री का फटा हुआ तार-तार दरिया
वो एक जुज़ था जो अपने कुल की तलब में हैरान-ओ-मुज़्तरिब था
खुले समुंदर की खाड़ियों में उतर गया बे-क़रार दरिया
मैं अपनी कश्ती जला रहा था ग़म-ए-ज़माना के साहिलों पर
निगाह-ए-हसरत से तक रहा था मुझे मिरा ग़म-गुसार दरिया
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