करम नहीं तो निगाह-ए-इताब रहने दे
करम नहीं तो निगाह-ए-इताब रहने दे
रुख़-ए-हयात पे कोई नक़ाब रहने दे
निगाह-ए-नाज़ नया इंक़लाब रहने दे
तजल्लियात को ज़ेर-ए-नक़ाब रहने दे
मिरी निगाह में हश्र-ए-वफ़ा है ऐ वाइज़
अभी ये बहस-ए-अज़ाब-ओ-सवाब रहने दे
अभी है दिल को उमीद-ए-वफ़ा ब-नाम-ए-वफ़ा
हसीन ख़्वाब है ताबीर-ए-ख़्वाब रहने दे
निगाह-ए-मस्त ही काफ़ी है तेरे ज़िंदों को
शराब रहने दे साक़ी शराब रहने दे
शब-ए-फ़िराक़ के पहलू से जो उभर आया
सहर की गोद में वो आफ़्ताब रहने दे
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