खींच कर यूँ ले चली वहशत बयाबाँ की तरफ़
लाएँ जैसे तिफ़्ल-ए-बद-ख़ू को दबिस्ताँ की तरफ़
फ़ैज़ वहशत का अदा-ए-शुक्र जब वाजिब हुआ
सर झुकाया हम ने मेहराब-ए-गरेबाँ की तरफ़
हासिल-ए-जोश-ए-जुनूँ है मातम-ए-होश-ओ-ख़िरद
ख़ाक उड़ाते जाते हैं वहशी बयाबाँ की तरफ़
अक़्ल के तेग़-ए-जुनून-ए-तेज़ से कूचे कटे
कौन आए जादा-ए-चाक-ए-गरेबाँ की तरफ़
कर चुका जोश-ए-जुनूँ जिंस-ए-ख़िरद पर हाथ साफ़
लौट अब आती है बाज़ार-ए-गरेबाँ की तरफ़
इश्क़ के मकतब में जब आया पए दर्स-ए-जुनूँ
पहले ही उँगली उठी नून-ए-गरेबाँ की तरफ़
माइल-ए-ज़ेवर हुआ जब वो हसीन-ए-जामा-ज़ेब
चाँद आया चर्ख़ से तौक़-ए-गरेबाँ की तरफ़
होश में आते हैं दीवाने गई फ़स्ल-ए-बहार
दश्त-ए-वहशत छुप रहे पुश्त-ए-गरेबाँ की तरफ़
नाख़ुन-ए-ग़म का निशाँ दिल पर है मिस्ल-ए-माह-ए-नौ
उँगलियाँ उठती हैं उस ज़ख़्म-ए-नुमायाँ की तरफ़
जब किसी आशिक़ ने कुछ हाल-ए-परेशानी कहा
हँस दिए मुँह फेर कर ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरफ़
ज़ोफ़ में जी खोल कर रोने की हसरत है मुझे
देखता है यास से हर अश्क दामाँ की तरफ़
शम्अ' के शो'ले सितम करते हैं मिस्ल-ए-बर्क़-ए-तूर
देखता हूँ जब 'नज़र' बज़्म-ए-हसीनाँ की तरफ़
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