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सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

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    सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

    इम्कान-ए-नुमूद-ए-सुब्ह नहीं उम्मीद-ए-चराग़-ए-शाम नहीं

    दिल नामे के शक ले पुर्ज़े किया वाए नसीबे का ये लिखा

    पेशानी पर उन की मोहर नहीं सर-नामे पे मेरा नाम नहीं

    जाते हैं जो उजड़े ज़िंदा चमन इस बाग़-ए-जहाँ की वज्ह ये है

    गुलज़ार ये जिस गुलफ़म का है उस बाग़ में वो गुलफ़म नहीं

    बिछ जाएँगे बुलबुल के हज़ारों टूट पड़ेंगे जअल ये है

    सय्याद गुलाबी पहने है कपड़े चादर-ए-गुल है दाम नहीं

    इस नज्द में ख़ौफ़ लैला कर उस ग़म-ज़दा की ले जा के ख़बर

    मजनूँ से तिरा वहशी है तिरा बे-चारा कोई ज़िरग़ाम नहीं

    आगाह किया है दिल को हमारे किस ने तुम्हारी ख़ूबियों से

    इंसाफ़ करो मुंसिफ़ हो तुम्हीं फिर क्या है जो ये इल्हाम नहीं

    दिल देते ही उन को घुलने लगे नज़रों में अजल के तुलने लगे

    आग़ाज़-ए-मोहब्बत से ये खुला चाहत का ब-ख़ैर अंजाम नहीं

    आलम है अजब गीती-ए-अदम का चार तरफ़ है आलम-ए-हू

    आसाइश-ए-जान-ओ-रूह नहीं राहत का कोई हंगाम नहीं

    जाना है अदम की राह हमें होना है फ़ना-फ़िल्लाह हमें

    लेते हैं यहाँ दम चंद नफ़स हस्ती से हमें कुछ काम नहीं

    फिर आँख कभी खुलने की नहीं नींद आएगी इक दिन ऐसी हमें

    होना है यही सोचे हैं जो हम ये ख़्वाब-ओ-ख़याल-ए-ख़ाम नहीं

    चौरंग नहीं क्यूँ खेलते अब किस कुश्ते पे रहम आया है तुम्हें

    ख़ूँ-रेज़ियों का क्यूँ शौक़ नहीं क्यूँ ज़ेब-ए-कमर समसाम नहीं

    अक़्लीम-ए-ख़मोशाँ से तो सदा इक ग़म-ज़दा आती है ये सदा

    हैं सैकड़ों शाहंशाह यहाँ पर हुक्म नहीं अहकाम नहीं

    दुनिया में जो था ताबे था जहाँ मालूम नहीं पहुँचा वो कहाँ

    इबरत का महल कहते हैं इसे अब गोर में भी बहराम नहीं

    बुलबुल की फ़ुग़ाँ पर ख़ंदा-ज़नी ग़ुंचों ने जो की पज़मुर्दा हुए

    सच है कि हज़ीन-ओ-ग़म-ज़दा हो हँसने का ब-ख़ैर अंजाम नहीं

    दीदार के भूके तेरे जो हैं है ख़त्म उन्हीं पर नफ़स-कुशी

    कुछ ख़्वाहिश-ओ-फ़िक्र-ए-फ़ौत नहीं दुनिया के मज़े से काम नहीं

    तुम क़ब्र में क्यूँ उठ बैठे 'शरफ़' आराम करो आराम करो

    यारान-ए-वतन रोते हैं तुम्हें कुछ हश्र नहीं कोहराम नहीं

    स्रोत:

    Deewan-e-Sharf(Rekhta Website) (Pg. 176)

    • लेखक: आग़ा हज्जू शरफ़
      • प्रकाशक: मतबा जाफ़री, लख़नऊ
      • प्रकाशन वर्ष: 1875

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