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तू जिस्म है तो मुझ से लिपट कर कलाम कर

अनवर सदीद

तू जिस्म है तो मुझ से लिपट कर कलाम कर

अनवर सदीद

MORE BYअनवर सदीद

    तू जिस्म है तो मुझ से लिपट कर कलाम कर

    ख़ुशबू है गर तो दिल में सिमट कर कलाम कर

    मैं अजनबी नहीं हूँ मुझे रौंद कर जा

    नज़रें मिला के देख पलट कर कलाम कर

    बाला-ए-बाम आने का गर हौसला नहीं

    पलकों की चिलमनों में सिमट कर कलाम कर

    क़ौस-ए-क़ुज़ह के रंग मयस्सर नहीं तो फिर

    दरिया की मौज मौज में बट कर कलाम कर

    जन्नत में या तो मुझ को पुराना मक़ाम दे

    या मिरी ज़मीं में पलट कर कलाम कर

    अनवर 'सदीद' आम सा बंदा है उस के साथ

    मिट्टी पे बैठ गर्द में अट कर कलाम कर

    स्रोत :
    • पुस्तक : Karwaan-e-Ghazal (पृष्ठ 192)
    • रचनाकार : Farooq Argali
    • प्रकाशन : Farid Book Depot (Pvt.) Ltd (2004)
    • संस्करण : 2004

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