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उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

MORE BYवज़ीर आग़ा

    उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

    और उस के बाद दिल-ए-बे-निशाँ को पहचाना

    जला जो रिज़्क़ तो हम आसमाँ को जान गए

    लगी जो प्यास तो तीर कमाँ को पहचाना

    चलो ये आँख का जल-थल तो तुम ने देख लिया

    मगर ये क्या कि अब्र-ए-रवाँ को पहचाना

    बहार आई तो हर-सू थीं कतरनें उस की

    बहार आई तो हम ने ख़िज़ाँ को पहचाना

    ख़ुद अपने ग़म ही से की पहले दोस्ती हम ने

    और उस के बाद ग़म-ए-दोस्ताँ को पहचाना

    सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है

    वहाँ को भूल गए और यहाँ को पहचाना

    ज़मीं से हाथ छुड़ाया तो फ़ासले जागे

    मगर हम ने कराँ-ता-कराँ को पहचाना

    अजब तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने

    जहाँ में रह के कार-ए-जहाँ को पहचाना

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