उस की तरफ़ बस इस लिए तकता नहीं था मैं
उस की तरफ़ बस इस लिए तकता नहीं था मैं
सब देखते थे आँख झपकता नहीं था मैं
ऐसी दबीज़ तह थी बदन पर मलाल की
जलने के बावजूद चमकता नहीं था मैं
अन्दर की टूट-फूट में टूटे हैं लफ़्ज़ भी
दौरान-ए-गुफ़्तुगू यूँ अटकता नहीं था मैं
कुछ कुछ शु'ऊर-ए-हिज्र मुझे कम-सिनी से था
सो टहनियों से फूल उचकता नहीं था मैं
इक 'इत्र-साज़ लम्स ने तकमील की मिरी
वर्ना खिला हुआ भी महकता नहीं था मैं
गिर्या शुरू' से था पसंदीदा मश्ग़ला
घंटों भी करता रहता तो थकता नहीं था मैं
अच्छा हुआ ख़ुद उस की नज़र मुझ पे पड़ गई
उस को वहाँ पुकार तो सकता नहीं था मैं
- पुस्तक : आख़िरी तस्वीर (पृष्ठ 79)
- रचनाकार : उमैर नजमी
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2024)
- संस्करण : First
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