ज़िंदगी-ए-बे-मज़ा के नाज़ उठा सकता है कौन
ज़िंदगी-ए-बे-मज़ा के नाज़ उठा सकता है कौन
ग़ुलामुल्लाह अफ़्सूँ भोपाली
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ज़िंदगी-ए-बे-मज़ा के नाज़ उठा सकता है कौन
भूलने वाले भला तुझ को भुला सकता है कौन
बरमला रूदाद-ए-ग़म उन को सुना सकता है कौन
अपनी राह-ए-शौक़ में काँटे बिछा सकता है कौन
उस नज़र के सामने नज़रें उठा सकता है कौन
आसमाँ से इन ज़मीनों को मिला सकता है कौन
ज़ाहिरी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ पर है दुनिया ख़ुश तो हो
उन से जो कुछ रब्त-ए-बातिन है मिटा सकता है कौन
क़ल्ब रौशन हौसले मोहकम इरादे पाएदार
रहरवान-ए-इश्क़ को मशअ'ल दिखा सकता है कौन
ज़र्रा ज़र्रा से नुमायाँ जल्वा-हा-ए-हुस्न-ए-दोस्त
जब ये आलम हो तो फिर दामन बचा सकता है कौन
राह की दुश्वारियाँ अब उन को समझाना फ़ुज़ूल
डूबने वाले को ऐ 'अफ़्सूँ' बचा सकता है कौन
स्रोत:
Mata-e-Hayat (Pg. 93)
- लेखक: ग़ुलामुल्लाह अफ़्सूँ भोपाली
-
- प्रकाशक: नफ़ीसा सुल्ताना अंना
- प्रकाशन वर्ष: 2011
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