वाह बी म्यूंसिपल्टी जान क्या कहना तिरा
तू चची लैला की आशिक़ तेरा मजनूँ का चचा
अपनी ख़ुद्दारी को खो कर तुझ पे जो शैदा हुआ
बे-ख़ुदी में ये ज़बान-ए-हाल से कहते सुना
बस-कि दीवाना शुदम अक़्ल-ए-रसा दरकार नीस्त
आशिक़-ए-म्यूंसिपल्टी राहिया दरकार नीस्त
तेरा ख़्वाहिश-मंद हर क़ैद-ए-लियाक़त से बरी
जिस का जी चाहे लड़े और लड़ के ले ले मेम्बरी
अहद-ए-आज़ादी ने ऐसी डाल दी है अबतरी
अब तो हर तानीस और तज़कीर में है हमसरी
तुझ को क्या रंडी है कोई या कि रंडी-बाज़ है
तेरा दरवाज़ा कस-ओ-ना-कस के ऊपर बाज़ है
जम्अ कर दे क़र्ज़ ही ले कर ज़मानत के पचास
दूर होती जाए ग़ैरत जब इलेक्शन आए पास
वोटरों के हाथ जोड़े ख़ूब हो कर बद-हवास
गिड़गिड़ा कर हर कस-ओ-ना-कस से हो ये इल्तिमास
रेहन पर्चे के एवज़ इज़्ज़त मिरी कर लीजिए
अपने बच्चों का तसद्दुक़ वोट मुझ को दीजिए
सुनिए इक साहब का क़िस्सा जब हुई शामत सवार
ये ज़मानत कर के दाख़िल बन गए उम्मीद-वार
छोड़ पेशा तर्क फ़रमाया जो कुछ था कारोबार
कुछ असास-उल-बैत बेचा कुछ लिया सूदी उधार
मुज़्तरिब रहते थे ये नाम-आवरी के वास्ते
घर से निकले वोट लेने मेम्बरी के वास्ते
सब से पहले उन को जिस वोटर के घर जाना पड़ा
शैख़ बुद्धू नाम था और था जुलाहा क़ौम का
धोती बाँधे मर्ज़ई पहने तना बैठा हुआ
इक सड़ी मिट्टी का हुक़्क़ा पी रहा था कज-अदा
जाते ही तस्लीम की जब इस को बा-सद-एहतिराम
मुँह को टेढ़ा कर के बोला को है बालेकुम-सलाम''
बोले ये पहले न आया मैं हुआ इतना क़ुसूर
शैख़ बुद्धू आप मुझ पर रहम फ़रमाएँ हुज़ूर
आप को वालिद कहा करते थे भाई अब से दूर
मैं भतीजा आप का हूँ वोट ले लूंगा ज़रूर
बोले बुद्धू का कहियो हम केहका केहका बोट देई
बोट पहिए ऊ जो तिरते हमका दस का नोट देई
जब सुरतेदार बोला लाए हो कौनो गवाह
हम कहा ससुरा जमादरवा किहिस हम का तबाह
हम जुलाहा आप के और आप ठहरे बादशाह
कौन कह के सामने मूतत है साहब वाह वाह
हँस के कह देनें मुझड़ सीख जी जाओ बरी
रह गई मुँह हाए के सब लमबरन की लमबरी
सुन लियो सारी कथा दीहो कि नाहीँ ये बताओ
बोट माँगे आए हो हम से तो हम का कुछ दिलाओ
कर चिकन बकवास अब भय्या न हमरा मूड़ खाओ
कह दिया बस कह दिया अब जाओ चुप्पे घर का जाओ
जो रकम तुम से कहा सब पेशगी ले लेब हम
बूट दे मोटर पे ले जहियो तो हाँ दे देब हम
जब मियाँ बुद्धू के तेवर इस क़दर देखे कड़े
दहने बाएँ देख झट क़दमों पे इस के गिर पड़े
दिल में पछताए कि आख़िर क्यूँ हुए थे हम खड़े
कहिए ऐसे जाहिलों से क्या कोई कुश्ती लड़े
आबरू के साथ दे कर पाँच राज़ी कर लिया
कामयाबी पर हुए ख़ुश ताओ मोंछों पर दिया
आगे बढ़ कर एक हज़रत का हुआ फिर सामना
उन से जा कर इस तरह की अर्ज़ बा-सद-इल्तिजा
बंदा परवर एक मज़हब है हमारा आप का
वोट दीजेगा जो मुझ को आप ख़ुश होगा ख़ुदा
हैं मिरे हल्क़े में जो जो मेरे मज़हब के ख़िलाफ़
देखिए मेम्बर ज़रा हो लूँ तो कर दूँ सब को साफ़
मेहतराँ के दर पे झाड़ू देने आए क्या मजाल
और सक़्क़ा मुश्क से नाली धुलाए क्या मजाल
टेक्स घर-वारे का उन पर बंध ना जाए क्या मजाल
ले लें बमबा घर में बे मीटर लगाए क्या मजाल
नाच तिगनी का इन्हें अब मैं नचाऊँगा हुज़ूर
देखे किस किस तरह उन को सताऊँगा हुज़ूर
ख़ुश हुए सुन कर जनाब-ए-मौलवी-ए-मकतबी
हाथ फेरा रीश पर और इस तरह तक़रीर की
आप इस के अहल हैं मेरी नज़र में वाक़ई
ज़ात-ए-सामी को समझता हूँ मैं फ़ख़्र-ए-मेम्बरी
मोहतरम मैं व'अदे क़ब्ल-अज़-वक़्त कर सकता नहीं
फ़र्ज़ है ईफ़ा-ए-व'अदा फिर मुकर सकता नहीं
इस में इक इश्काल-ए-शरई' और भी है क्या कहूँ
में इआनत आप की बिल-फ़र्ज़ क़िरतासन करूँ
राय तो अपनी हिबा कर दूँ एवज़ कुछ भी न लूँ
क्यूँ बदल ज़ाएअ' करूँ किस वास्ते मुस्रिफ़ बनूँ
जानता हूँ ये कि मेरी राय है कितनी वक़ीअ'
मुफ़्त ज़ाएअ' क्यूँ करूँ जब मैं नहीं हू मुस्तती'
हस्ब-ए-ख़्वाहिश गर बदल मुझ को अता कर दें जनाब
क्या अजब पेश-ए-ख़ुदा माजूर भी हूँ और मसाब
मैं ने दिखला दी हुदूद-ए-शरअ' में राह-ए-सवाब
मेरे मारूज़ात को फ़रमाइए गर मुस्तजाब
राय दे देने में अहक़र को तअम्मुल कुछ न हो
ख़ुद करूँ ताजील हतमन फिर तसाहुल कुछ न हो
राय दे दूँगा एवज़ मैं आप को ख़मसीन के
इतने ही मिलते हैं मुझ को वाज़ के तल्क़ीन के
हज़रत-ए-वाला तो ख़ुद पाबंद हैं आईन के
इस से कम देना मुरादिफ़ है मिरी तौहीन के
हाँ ये मुमकिन है कि कुछ तक़लील फ़रमा दीजिए
है ये कार-ए-ख़ैर अब ताजील फ़रमा दीजिए
ख़ुल्लस-ए-अहबाब से क्यूँ इस्तिशारा कीजिए
राज़ पोशीदा रहे क्यूँ आश्कारा कीजिए
सब से अच्छा है ज़रा ज़हमत गवारा कीजिए
लीजिए तस्बीह मुझ से इस्तिख़ारा कीजिए
अर्ज़ की है मैं ने जो इतनी रक़म पर देखिए
मनअ' जब आए तो फिर कुछ इस से कम पर देखिए
ये निहायत काएँ थे दिल में ये बोले सोच के
शक्ल तो अच्छी है पर ज़ेबा नहीं मेरे लिए
इस्तिख़ारा मैं करूँ क्या आप के होते हुए
करता हूँ निय्यत तो मैं आप इस्तिख़ारा कीजिए
निय्यत उन के दिल में थी तस्बीह उन के हाथ में
चूहा अपनी घात में था बिल्ली अपनी घात में
मनअ' आया इस्तिख़ारा छूटते ही पहली बार
मौलवी साहब के चेहरे पर हुआ कुछ अंत्र-जार
फिर जो देखा वाजिब आया हो बे-इख़्तियार
पूछा निय्यत किस क़दर पर की थी बहर-ए-ख़ाकसार
बोले निय्यत दस पे की थी लीजिए बंदा-नवाज़
कामयाबी की दुआ फ़रमाइए बअ'द-अज़-नमाज़
इस जगह से उठ के घर पर एक साहब के लिए
दस बरस नाकाम रहने पर हुए थे जो बी ए
रेलवे में थे मुलाज़िम ख़ुद भी थे चलते हुए
आप की तनख़्वाह तो कम ठाठ थे लेकिन बड़े
इंग्लिश स्टाइल पे रहने का जो उन को शौक़ था
बूट बैटरी पाँव की कॉलर गले का तौक़ था
फूस के छप्पर में रहते थे ये इस सामान से
और फर्निचर तो ख़ारिज उन के था इम्कान से
टूटी फूटी कुर्सियाँ ले कर किसी दूकान से
बैठते थे उन पे छप्पर में निहायत शान से
नाम इक तख़्ती पे लिख रखा था यूँ बहर-ए-वक़ार
मिस्टर अबराहाम बी-ए टी टी सी ई आई आर
देख कर सूरत को उन की इस तरह कहने लगे
आई एम वेरी बिज़ी मेक हीस्ट जल्दी बोलिए
फिर उधर टहले इधर टहले घड़ी को देख कर
अपने कुत्ते से कहा कम सून उन से गो अवे
फिर कहाँ यू आर कैंडीडेट बट नो बोल्ड मैन
तुम को अपनी वोट कैसे देगा साहब ओलड मैन
चूँकि कैंडीडेट अंग्रेज़ी समझते ही न थे
गिड़गिड़ा कर इस तरह साहब से फ़रमाने लगे
ये तो मुमकिन ही नहीं है आप पैदल जाइए
मैं ने मोटर माँग ली है आप ही के वास्ते
और क्यूँकर इस तरह चलिएगा मुझ को देने वोट
कीजे पॉकेट बुक पे तारीख़-ए-इलेक्शन जल्द नोट
बात अंग्रेज़ी-नुमा उर्दू में यूँ साहब ने की
हम कहा इंग्लिश में टुम समझा नहीं ओ आई सी
देखो अपनी वोट रखनी माँगटा है हम फ़्री
किस को देगा पहले बटलाने नहीं सकटा कोई
हम सिटी फ़ादर नहीं तुम को बनाना माँगटा
डी.एम. फिर मोटर पे हम काहे को जाना माँगटा
हो के जब मायूस ये पलटे वहाँ से मुँह बनाए
दिल में कहते थे कि इन का वोट तो जाना है हाए
साल भर पहले बड़े दिन में जो डाली दे तो पाए
अब ब-जुज़ इस के कोई सूरत नहीं बनती बनाए
फ़ीस दे कर नर्स इक बहर-ए-सिफ़ारिश लाऊँगा
चल गया चकमा तो उन से वोट फिर ले जाऊँगा
फिर बढ़े आगे यहाँ से वोट के अरमान में
घुस पड़े ये एक बुज़ क़स्साब की दूकान में
नस्र में पढ़ कर क़सीदा पहले उस की शान में
चाहते थे ये कहीं कुछ शैख़ जी के कान में
यूँ कनौती को बदल कर शैख़ साहब ने कहा
सुनिए हजरत हम लगी लिपटी नहीं रखते जरा
चौधरी ने कल कहा था हम से ऐ भय्या सुकूर
सीख मुन्ने जिस को कह दें बूट दे देना जरूर
पर मनाही कर गए जब मौलबी अब्दुल गफूर
राफजी को बोट दे सकते नहीं हम तो हुजूर
सुनते हैं कुरआन में फ़रमा गए थे खुद रसूल
दीन की जब बात ठहरी दख्ल देना बे फुजूल
वाँ कुतुब-उद्दीन भी कहते थे सच्ची है ये बात
गैर मजबब वाले को लंबर बनाना बा-हियात
सीख जी मजहब तुम्हारा और उन की और जात
हो के लंबर वह खुदा जाने करें किया वारदात
हाँ कोई मजहब का अपने हो तो इस को बोट दो
जब तुम्हें मौका मिले ऐसों को भय्या चोट दो
इन को बुज़ क़स्साब ने जब दे दिया रूखा जवाब
ये उठे दूकान से मायूस बा-चश्म-ए-पुर-आब
अपने वर्कर से कहा जा कर कि सुनिए तो जनाब
आप ही तदबीर अब कुछ कीजिए उस की शिताब
सर्फ़ की पर्वा नहीं जो हो मुनासिब कीजिए
शैख़ जी के वोट को लेकिन न जाने दीजिए
दिल में वर्कर ख़ुश हुए कहने लगे बा-सद सुरूर
इस तरफ़ से आप बिल्कुल मुतमइन रहिए हुज़ूर
और लोगों से ज़्यादा सर्फ़ तो होगा ज़रूर
तो सही जब आप ही को वोट दें अब्दुश्शुकूर
पीर लोटन शाह की ख़िदमत में जाता हूँ अभी
हुक्म उन का शैख़ जी के पास लाता हूँ अभी
पीर लोटन शाह थे इक ख़ानदानी तकिया-दार
आँख में सुर्मा कई रत्ती गले में चंद हार
रीश-ए-अक़्दस पान के धब्बों से रश्क-ए-लाला ज़ार
गेरुआ कुर्ता गले में हाथ में इक पुश्त ख़ार
ज़र्द तहमद पाँव में लकड़ी की ऊँची सी खड़ाऊँ
घूमते फिरते थे यूँही शहर शहर और गाँव गाँव
पहुँचे वर्कर उन की ख़िदमत में ब-ताजील-ए-तमाम
दो रूपए नज़राने के दे कर किया झुक कर सलाम
अर्ज़ की हैं आप तो हाजत रवा-ए-ख़ास-ओ-आम
शैख़ जी का वोट दिलवा दीजिए बस है ये काम
चूँकि हज़रत की हैं बैअत में मियाँ अब्दुश्शुकूर
आप फ़रमा दें अगर तू वोट दे देंगे ज़रूर
आप की दावत का कल घर पर करूँगा इंतिज़ाम
शैख़ जी को भी बुला लूँगा वहीं पर वक़्त-ए-शाम
तज़्किरे में वोट का छेड़ूँगा माबैन-ए-तआ'म
आप उन को हुक्म दे दें गे तो हो जाएगा काम
बोले लोटन शाह बाबा ख़ुश रहो दावत क़ुबूल
हम फ़क़ीरों की दुआ से होगा सब मतलब हुसूल
मुख़्तसर से इब्तिदाई वाक़िए जो कुछ लिखे
क्या अजब काफ़ी हों ये पब्लिक की इबरत के लिए
इस तरह के वोटर और मेंबर हूँ जब इस क़िस्म के
कहिए इस म्यूंसिपल्टी से किसे राहत मिले
साकिनान-ए-शहर अब होश्यार होना चाहिए
मेंबर और वोटर का कुछ मेआ'र होना चाहिए
ख़त्म भी कर दो ज़रीफ़' अब तुम बयान-ए-मेम्बरी
ता-ब-कै आख़िर रहोगे क़िस्सा-ख़्वान-मेम्बरी
ख़्वाब से चौंकें ज़रा जब सर-गिरान-ए-मेम्बरी
फिर सुना देना उन्हें तुम दास्तान-ए-मेम्बरी
अब समंद-ए-फ़िक्र की बाग और जानिब मोड़ दो
सोने वाले सो गए क़िस्सा अधूरा छोड़ दो