क्या चेहरे ख़ुदा ने दिए इन ख़ुश-पिसरों को
क्या चेहरे ख़ुदा ने दिए इन ख़ुश-पिसरों को
देना था तनिक रहम भी बेदाद-गरों को
आँखों से हुई ख़ाना-ख़राबी-ए-दिल ऐ काश
कर लेते तभी बंद हम इन दोनों दरों को
परवाज़-ए-गुलिस्ताँ के तो शाइस्ता न निकले
परवाना-नमत आग हम अब देंगे परों को
सब ताइर-ए-क़ुदसी हैं ये जो ज़ेर-ए-फ़लक हैं
मूँदा है कहाँ इश्क़ ने इन जानवरों को
ज़िन्हार तिरे दिल की तवज्जोह न हो ईधर
आगे तिरे हम काढ़ रखें गर जिगरों को
पैराहन-ए-सद-चाक सिलाते हैं मिरा लोग
तह से नहीं मुतलक़ ख़बर इन बे-ख़बरों को
जूँ अश्क जहाँ जाते रहेंगे तो गए फिर
देखा करो टुक आन के हम दीदा-तरों को
इस बाग़ के हर गुल से चिपक जाती हैं आँखें
मुश्किल बनी है आन के साहिब-नज़रों को
आदाब-ए-जुनूँ चाहिए हम से कोई सीखे
देखा है बहुत यारों ने आशुफ़्ता-सरों को
अंदेशा की जागह है बहुत 'मीर' जी मरना
दरपेश अजब राह है हम नौ-सफ़रों को
- पुस्तक : मीरियात - दीवान नंo- 2, ग़ज़ल नंo- 0932
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