बबीं तफ़ावुत-ए-रह
अजब था हिन्द-ए-पारीना का वो क़ानून भी जिस में
जो कोई मर्द आवारा
किसी औरत को संदल ज़ेवरात-ए-जौहर-ओ-ज़र पैरहन माला शराब इर्साल करता तो
ज़िना की एक सूरत मानते थे इस अमल को भी
किए जाते थे जिस पर भारी जुर्माने
तअश्शुक़ ग़ैर की बीवी से पैग़ाम उस को भिजवाना
और उस से छेड़ उस का पैरहन छूना
किसी औरत की सोहबत में अकेले में मचल जाना
फ़लातूनी वफ़ा की आरज़ू करना
और आँखों के इशारों से रसीली गुफ़्तुगू करना
किसी तालाब में उस की मइय्यत में नहाना भी
बहलना मुस्कुराना भी
ज़िना की सूरतें थीं सब
किए जाते थे जुर्माने हमेशा इन जराएम पर
अजब किरदार की पाकीज़गी का वो तसव्वुर था
कि जिस में इतनी बंदिश थी
अजब था वो शिआ'र अपना
और अब आज़ादगी लहरा रही है बे-ख़तर हो कर
कोई बंदिश नहीं ख़्वाहिश की लग़्ज़िश पर
ग़ज़ब है ये शिआ'र अपना
स्रोत:
(Pg. 25)
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