इल्म की वुसअ'त का कोई भी सिरा होता नहीं
इल्म की कश्ती का कोई नाख़ुदा होता नहीं
इल्म वालों को मुक़द्दर से गिला होता नहीं
इल्म वालों का कोई भी जुज़ ख़ुदा होता नहीं
इल्म है तो दर-हक़ीक़त आदमी है आदमी
इल्म है तो उस की दुनिया में रहेगी रौशनी
इल्म वो शय है जिसे कोई चुरा सकता नहीं
छीनना चाहे इसे कोई तो पा सकता नहीं
इल्म है तो ज़िंदगी कोई दिखा सकता नहीं
इल्म है तो आदमी दोज़ख़ में जा सकता नहीं
इल्म ही से अब जिहालत को मिटाया जाएगा
इल्म से आज़ाद हिन्दोस्ताँ बनाया जाएगा
इल्म दुनिया-ए-जहालत में है लाता इंक़लाब
इल्म चमकाता है ज़र्रों को बना कर माहताब
इल्म से आलम का रुख़ जैसे शगुफ़्ता हो गुलाब
इल्म ही से दूर होता है हमेशा पेच-ओ-ताब
इल्म रौशन करता है तारीकियों को इस तरह
रास्ता बतलाए बिजली बादलों में जिस तरह
जिस किसी ने पा लिया है इल्म का रंगीन बाग़
जिस किसी ने इल्म की राहों का पाया है सुराग़
मुस्तक़िल उस के इरादे उस का रौशन है दिमाग़
आँधियाँ भी अब बुझा सकती नहीं उस का चराग़
अज़्मत-ए-इल्म-ओ-हुनर से बढ़ के कोई शय नहीं
क़द्र-ओ-क़ीमत अहल-ए-फ़न की हर जगह है हर कहीं
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