aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आदिल राही

ग़ज़ल 9

अशआर 5

तुम्हारे बाद ये ग़म भी उठाना पड़ता है

ख़ुशी मिले मिले मुस्कुराना पड़ता है

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तुम मिरा नाम-ओ-नसब पूछ रहे हो सब से

इश्क़ हो जाए तो शजरा नहीं देखा जाता

उम्र-भर उन से त'अल्लुक़ नहीं टूटा करता

ऐसे कुछ लोग हैं जो दिल में उतर जाते हैं

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उन्हें यक़ीं कि कोई रंज-ओ-ग़म नहीं मुझ को

मुझे भरम कि मिरा मसअला समझते हैं

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तिश्नगी तुझे दरिया के हवाले कर दूँ

तुझ को इस हाल में प्यासा नहीं देखा जाता

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