अब्दुर्रहीम नश्तर
ग़ज़ल 20
नज़्म 8
अशआर 13
पान के ठेले होटल लोगों का जमघट
अपने तन्हा होने का एहसास भी क्या
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फटे पुराने बदन से किसे ख़रीद सकूँ
सजे हैं काँच के पैकर बड़ी दुकानों में
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फिर इक नए सफ़र पे चला हूँ मकान से
कोई पुकारता है मुझे आसमान से
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वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर
किसे ख़बर कि वो दिन भर कहाँ रहा होगा
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