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अदीब सहारनपुरी

1920 - 1963 | कराची, पाकिस्तान

पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल, परम्परा और आधुनिकता के मिश्रण की शायरी के लिए जाने जाते हैं

पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल, परम्परा और आधुनिकता के मिश्रण की शायरी के लिए जाने जाते हैं

अदीब सहारनपुरी के शेर

मंज़िलें भूलेंगे राह-रौ भटकने से

शौक़ को तअल्लुक़ ही कब है पाँव थकने से

अपने अपने हौसलों अपनी तलब की बात है

चुन लिया हम ने उन्हें सारा जहाँ रहने दिया

राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में

ग़म पालती है उम्र-ए-गुरेज़ाँ नए नए

हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हम

चले हैं उठ के तो अक्सर गए उसी की तरफ़

बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से

मिरी उम्र-ए-रवाँ और ज़रा आहिस्ता

यही महर माह अंजुम को गिला है मुझ से या-रब

कि उन्हें भी चैन मिलता जो मुझे क़रार होता

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

जान कर हम ने उन्हें ना-मेहरबाँ रहने दिया

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