aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमद तारिक़

ग़ज़ल 14

अशआर 5

आसमाँ पर गरजना बादलों का

तेरे लहजे का इस्तिआ'रा है

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तेरी आँखों तेरी ज़ुल्फ़ों का गिला कैसे उतारूँ

तेरे होंटों पर सफ़र करता क़लम थकता नहीं है

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बता ख़ुद को भला कैसे संवारूँ

मुझे ग़म आइनों में दिख रहा है

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हथेली पे लिख ले मिरा नाम तू

लकीरों में रचना मिरा काम है

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मेरी आँखों का रात दिन रोना

मेरे ख़्वाबों की आब-यारी है

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