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अख़्तर अमान

अख़्तर अमान

ग़ज़ल 6

नज़्म 1

 

अशआर 3

तमाम उम्र गुज़र जाती है कभी पल में

कभी तो एक ही लम्हा बसर नहीं होता

बदन के शहर में आबाद इक दरिंदा है

अगरचे देखने में कितना ख़ुश-लिबास भी है

हमें हर आने वाला ज़ख़्म-ए-ताज़ा दे के जाता है

हमारे चाँद सूरज और सितारे एक जैसे हैं

 

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aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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