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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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Amanullah Khalid's Photo'

अमानुल्लाह ख़ालिद

परम्परा और सामाजिक यथार्थ की संवेदना के साथ शायरी करने वालों में शामिल

परम्परा और सामाजिक यथार्थ की संवेदना के साथ शायरी करने वालों में शामिल

अमानुल्लाह ख़ालिद के शेर

उन की तमन्ना मेरी कोशिश बाहम वा'दे और क़स्में

कुछ मेरी तक़दीर के सदक़े बाक़ी सब हालात के नाम

मैं तुझे भूल पाया तो ये चाहत है मिरी

याद रक्खा है जो तू ने तिरा एहसाँ जानाँ

वक़्त की तेज़ हवाओं ने अजब मोड़ लिया

फूल से हाथ जो थे उन में भी पत्थर निकले

किताब ज़ीस्त में बाब-ए-अलम भी हो महफ़ूज़

सियाह-रात का मंज़र सहर में रक्खा जाए

दर्द ऐसा दिया एहसास-ए-वफ़ा ने हम को

दवा ने ही शिफ़ा दी दुआ ने हम को

रुको तो यूँ कि ठहर जाए गर्दिश-ए-दौराँ

चलो तो ऐसे कि सारे जहाँ को साथ लिए

जिसे भी देखो वही अजनबी सा लगता है

तुम्हारे शहर में कोई भी आश्ना मिला

मैं ही था इक आँख भाओं वो तो अब भी यार हैं तेरे

जिन लोगों ने तेरा चर्चा बाज़ारों में आम किया

हर दर पे इक बाँग लगावें भला करो बस भला करो

एक ही शिकवा एक ही नाला सुब्ह किया और शाम किया

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