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अमीर नहटौरी

1968 | बिजनौर, भारत

अमीर नहटौरी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 7

दिल के ज़ख़्मों को सजाने का हुनर रखता हूँ

मुस्तक़िल मैं तिरी यादों का सफ़र रखता हूँ

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फ़ुर्क़त की शब ख़ामोशियाँ ज़ख़्मों की फिर अंगड़ाइयाँ

आँखें जब अपनी नम हुईं बेचारगी अच्छी लगी

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वक़ार-ए-शौक़ से गिर कर भी वार मत करना

मिले जो ज़ख़्मी परिंदा शिकार मत करना

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हम अपने ज़ख़्मों पे रख लें नमक ज़रूरी है

दयार-ए-इश्क़ में उन की महक ज़रूरी है

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होगी चारागर तिरी तदबीर कारगर

हम को ख़ुद अपने ज़ख़्मों की चाहत है आज-कल

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